मुझे वो मिल गया जबसे
बहरे हज़ज मुसम्मन सलीम
अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
वज्न- 1222 1222 1222 1222
गीत
मुझे वो मिल गया जबसे ,नहीं रहती हूँ उलझन में।
रगों में उसकी बहती हूँ, महक जैसे हो चंदन में।।
न उसको चाह है मेरी,न मुझको आरजू उसकी।
रहे वो सँग हर-पल यूँ ,चले ज्यों साँस धड़कन में।
करे वो प्रेम मुझसे ही, मग़र मेरा न प्रेमी है।
किया वादा न बांधेगा ,मुझे नाते न बन्धन में।।
निगाहों को किये नीची,वो सूरत मेरी पढ़ता है।
बयाँ वो हू-ब-हू करता ,कि देखूँ जैसे दर्पण में।।
मुझे ताक़त क़लम की ही ,बताने हाथ थामा है।
नही ख्वाहिश कि बन खनके,बजे चूड़ी की खनखन में।।
कदम हर साथ चलता है ,भटक पाऊँ न राहों में।
नुपुर बनके नही बजना, उसे पायल की छनछन में।।
न आश़िक ,प्रेमी ,दीवाना न मझ़नू है न परवाना।
उमर भर साथ चाहे वो, मिले उसको जगह मन में।।
गुज़रता जा रहा जीवन ,वो मेरी ख़ुशनसीबी थी।
कभी गमले की शोभा थी ,खिली हूँ आज उपवन में।।
यही अब एक हसरत है, नहीं अब साथ ये छूटे।
भटक जाये न राहों में, बिछड़ जाये नही वन में।।
है इक़ गुमनाम सा रिश्ता मग़र इक़ जान दो तन हैं।
ढला कब मेरीआदत में ,कहूँ क्या है वो नज़रन में।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा