मुझे मालूम होता …
मुझे मालूम गर होता बसर का।।
कभी रुख भी नहीं करता शहर का।।
मुझे हाँ कर या बिलकुल ही मना कर;
ये क्या मतलब अगर का औ मगर का।
हमारे खेत रस्ता देखते हैं,
कहाँ पानी गया उनकी नहर का।।
कभी पानी कभी रोटी के लाले,
बड़ा मुश्किल हुआ जीना बशर का।।
बदलती ही नहीं तासीर उसकी
मिजाज़ ऐसा ही होता है ज़हर का।।
मुहब्बत लाख हो रूकती नहीं है,
यही अंदाज़ होता है लहर का।।
जी लूँगा ज़िन्दगी मुश्किल पलों में,
सफ़र में साथ गर है हमसफ़र का।।
…..सुदेश कुमार मेहर