मुझे मालूम नही
*मै सोयी हुई हूं या जाग रही हूं..? मुझे मालूम नहीं..! मै जो देख रही हु वह सपना है या सच है.?
मुझे मालूम नहीं..?*
अंधेरी राह में मै रास्ता भटक गयी हुं.., दूर दूर तक कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा !
न अपना न पराया कोई भी नही.., न दिया न रोशनी कुछ भी नही..!
मै चिल्लाना चाहती हुं लेकिन ङर के मारे कंठ सूख गया है..!
मेरी सांसें तेज चल रही है.., मेरे कदम भी तेज चल रहे है..!
मै चल तो रही हुँ.., पर किधर..? मुझे मालूम नहीं..!
क्या है वो.., दूर कही एक रोशनी दिख रही है.., मेरे कदम अब उस ओर जा रहे है..
अब मै उस रोशनी के करीब आ गयी..,
एक दिया एक पूराने मंदिर मे जल रहा है..,
पर ये क्या?
उस मन्दिर के अंदर कोई मूर्ती नहीं..,
ये कौनसे भगवान का मंदिर है..? मुझे मालूम नही.. !
मंदिरमे उपर छतमें एक बडी घंटा लटक रही है..,
मै उस घंटा को बजाने के लिए हाथ ऊपर किया है.., पर ये क्या है..? उस घंटा को बजानेवाला टोल उसमें नही.., टोल क्यो नहीं..,
मुझे मालूम नहीं..!
अब मै ठीक उस घंटा के नीचे खङी होकार उसे देख रही हूं..,
ये क्या अचानक क्या हुआ.., घंटा मेरे उपर आ गिरी.. , अब मेरा पूरा शरीर उसमें ढक गया.., अब इससे बाहर कैसे आऊंगी,..? मुझे मालूम नहीं !
शायद सुबह होनेवाली है.. कीसीके आने की आहट आई है..
पर किसकी आहट है..? मुझे मालूम नहीं.. !
किसीने रस्सी से खिंचकर उस घंटा को फिर से मंदिर के छत पे टांग दिया..,
उस घंटा में टोल अब दिख रहा है.. जो पहले नहीं था..,
अरे पर मै कहां हूं..,
मै दिखाई क्यों नहीं दे रही.. ? मुझे मालूम नहीं..!
किसीने घंटा नाद किया… मै सून रही हूं पर मै कहाँ हु? मुझे मालूम नहीं..!
उस बीना मूर्ती वाले मंदिर मे
कोई “ॐनमो शिवाय
तो कोई “गणपति बाप्पा”,
तो कोई “सतनाम वाहेगुरु
तो कोई “झुलेलाल”,
तो कोई “धन निरंकार” जाप जप रहा है.., मै यहां हूं मेरा स्मरण किसीने किया या नही..? मुझे याद नही..! *मै सोयी हुई हु या जाग रही हूं..? मुझे मालूम नहीं..! मै जो देख रही हु वह सपना है या सच है..?
मुझे मालूम नही..! मै जिंदा हु या मर गयी हूं.. ?, मुझे मालूम नही..!*
लेखक:- ठाकुर छतवाणी
( श्री मित्रा जसोदा पुत्र)