मुझे भी जीने दो (भ्रूण हत्या की कविता)
माँ के पेट में ही छटपटा रही मैं
बेटी हो के जन्म ले रही तो क्या हुआ?
मुझे मत मारो पापा
मुझे भी तो जीने दो पापा.
बेटा ही हो सिर्फ़ इसी चाहत में
हमारी जान लेने पे क्यों अड़े हुए हो?
बेटा बेटी के जन्म में ये फर्क कैसा?
मुझे भी जीने दो पापा.
बीटिया भी तो आपकी ही संतान है
क्यों मुझे गले लगाना नहीं चाहते?
मैं भी तो आपकी सेवा कर सकता
हर माँ बाप ये क्यूँ नहीं समझता?
बेटा होने के लालच में सब कोई
कोख में ही हमें क्यूँ मार देते हो?
हमारी भी जान है जो भगवान् ने दी
वेबज़ह बेकसूर की क्यूँ जान लेते हो?
बेटा तुम्हारे लिए दहेज लाएगा
पर बेटी ब्याहने में दहेज देना होगा
बस यही सोचकर ना सब लोग
बेटी को कोख में ही मार दे रहे हो?
बेटा बेटी में फर्क कैसा?
दोनों तुम्हारी ही संतान हैं
अपनाओ उसे एक जैसा
ना बनो लालच में हैवान जैसा.
बीटिया भी अपने पैड़ों पे खड़ी हो सकती
आफत विपत माँ बाप के काम आ सकती
अब तो सोच बदलो मुझे मत मारो, जीने दो
मुझे भी दुनियाँ देखने दो पापा.
कवि- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)