मुझे बेज़ार करने के उसे भी ख़्वाब रहते हैं
मुझे बेज़ार करने के उसे भी ख़्वाब रहते हैं
कि जैसे सामने कश्ती के कुछ गिर्दाब रहते हैं
जिसे देखा गया हो बस गरजने की ही सूरत में
उसी एक अब्र में लिपटे हुए सैलाब रहते हैं
उन्हीं के सामने आती है अक्सर मुश्किलें सारी
वो ही कुछ शख़्स जो सबके लिए बेताब रहते हैं
हमारे साथ रहकर भी हमारे हो नहीं सकते
हमारी बज़्म में ऐसे कई अहबाब रहते हैं
~अंसार एटवी