मुझे पता न था…!
इतनी खुशनुमा होगी मेरी ज़िंदगी
मुझे पता न था…!
छुपा है प्यार में खुदा की बन्दगी
मुझे पता न था…!
उनके पहलू में भूल जाऊँगा
मैं अपने हर एक गम को
थम जाएगी मचलती आवारगी
मुझे पता न था…!
कभी जीसे ख्वाब में देखा
उसीके सच पर मुझे शक था
बसी एक तस्वीर थी दिल मे
पर न उस पर मेरा हक़ था
लिखें किस्मत का किस्सा जो
वही ये करिश्माई खेल जानेगा
किसी को भा गयी मेरी सादगी
मुझे पता न था…!
किसी के नाम से बहती हवाएं
कर गुज़रती कानो में सरगोशियां
किसी की याद आकर हरपल बढ़ाती
मेरे बैचैन मन मे मदहोशियां
भला क्यों ढूंढती है आंखे
हमेशा उस स्वप्न सुंदरी को
बढ़ती जा रही क्यों दीवानगी
मुझे पता न था…!
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २५/१०/२०१८ )