*** मुझे निभृत चाहिए ***
मुझे निभृत चाहिए
या जीवन का अवसान
सियरान हो जाये
मेरा जलता ज़िगर या
स्निग्ध मुस्कान के साथ
मीच मुझे ले जाये
मुण्ड से खण्ड अलग कर
धारातीर्थ कराये मुझे कोई
वृथा-विमर्श से फायदा क्या
ताल्लुख नहीं होता खलक में
किसी का दिल से
यह रनित स्त्रोत है
मेरे दिल में
ऐ मीच जल्दी आ
जल्दी आ
इस उद्भ्रांत जीवन को
अवसित कर जा ।।
?मधुप बैरागी