” मुझे नहीं पता क्या कहूं “
” मुझे नहीं पता क्या कहूं ”
मुझे नहीं पता क्या क्या लिखूं मैं आज
परेशान परेशान सी मैं क्यों रहने लगी हूं ,
एड़ी से चोटी तक बदन दर्द रहने लगा है
कभी कभी लगता शायद बूढ़ी हो चली हूं ,
फिर महसूस होता बुढ़ापा तो नहीं आया
क्यों बेवजह आजकल घबराने लगी हूं ,
किसकी लगी है नज़र राम ही जानता है
दिन रात मेहनत की लक्ष्य खातिर भगी हूं ,
ना जाने कितने बुरे भले इंसान मिलते गए
अनचाही संगत में इनके रोने भी लग गई हूं ,
कहावत है दुष्ट लोगों की परछाई भी बुरी
ना चाहते हुए भी मैं दुष्टों संग रहने लगी हूं ,
ना बात करती ना कभी संग खाना खाती
फिर क्यों दफ्तरी संगति में घिरने लगी हूं ,
कुछ तो हुआ है अनायास यह स्थिति नहीं
कभी गलत नहीं किया फिर क्यों बुरी हूं ,
सिर्फ राज जानता है मीनू हमेशा सही है
तभी तो हर हाल में मजबूती से खड़ी हूं ।