मुझे धोखेबाज न बनाना।
हर दिन मैं अपनें लोगो
से ही धोखा खा रही हूँ
कल तक मुझे अभिमान था
अपनी बुद्धि पर
आज उसी ज्ञान पर पछता रही हूँ
सीख न पाई धोखा देना
इसलिए आजकल धोखा खा रही हूँ।
हर कदम पर कोई न कोई अपना
ठग कर चला जा रहा है
हर दिन अपनों पर से विश्वास
तार-तार होते जा रहा है।
कैसे पहचानु मैं उन चेहरे को
जो हर दिन मुझे छलने के लिए
चेहेर पर अपनत्व का मुखाटा
लगाकर आ जाता है।
न चाहकर भी मैं हर रोज़
धोखे के दलदल में फँस जाती हूँ।
जिससे उम्मीद नही थी धोखा पाने की
अक्सर वहीं लोग मुझे धोखा दे जाते है
गिद्ध भेड़िए बनकर अपने ही
हर तरह से नोचने में लग जाते है।
यह सारा माया जाल एक-दूसरे से
ऊपर उठने और पैसों का है
जिसके पीछे हर आदमी
पागल होते जा रहा है।
चाहे कितना भी गहरा रिश्ता क्यों न हो
आजकल वही धोखा देकर जा रहा है।
कुछ कदम आगे जाकर पीछे देखा
मेरे अपने ही मुझे धोखा देकर
मेरे सीधेपन पर मुस्कुरा रहे थे
कितना बुद्धु है यह कहकर
मेरा ही मजाक उड़ा रहे थे।
मैं कैसे उन्हें बताऊँ की मैं
समझती तो सब हूँ।
पर हार मान जाती हूँ क्योंकि
जब धोखा देने वाले मेरे अपने ही है
कैसे मैं उन्हें लज्जित करूँ
भले ही उन्होंने मुझे अपना न माना हो
पर मैने तो उन्हें अपना माना है।
कैसे मै उन्हें उनके नजरो मे गिराऊँ
कैसे मै उन्हें धोखे के बदले धोखा लौटाऊँ
बस ईश्वर से यह विनती हैं मेरी
चाहे समय कैसा भी हो
मुझे इस धोखे के दलदल में न गिराना
मुझे धोखेबाज न बनाना।
~ अनामिका