मुझे तो मेरी फितरत पे नाज है
मुझे तो मेरी फितरत पे नाज है,
कि दुश्मन भी मुझे दुआ दे देते हैं।
मैं तो किस्मत पे भी भरोसा नहीं करता,
क्योंकि दोस्त भी मुझे दगा दे देते हैं।
ऐ जिन्दगी तुने तो मुझे,
शक करना भी सिखा दिया।
वर्ना मेरी फितरत ही नहीं थी,
किसी की भरोसे पर भरोसा न करना।
किसी से कोई गुनाह होती भी नहीं है,
और लोग हैं कि सजा भी दे देते हैं।
मुझे तो मेरी फितरत पे नाज है . . . . . .
मैं तो दूध में शक्कर की तरह ही,
मिल जाया करता हूं।
कुछ लोग ही हैं जो मीठे की जगह,
नमक मिला दिया करते हैं।
काम बिगाड़ने की फितरत जो लोगों में हो गई है।
इसलिए तो बेमतलब ही मुसीबत दे देते हैं।
मुझे तो मेरी फितरत पे नाज है . . . . . .
पल पल गिरगिट की तरह रंग बदलना,
इंसानी फितरत में शुमार है।
चतुर चालाक भेड़िया की तरह ही हैं,
जैसे सामने कोई मासूम शिकार है।
ऐसे जाल बुन लेते हैं लोग,
कि फंसा कर धोखा दे देते हैं।
मुझे तो मेरी फितरत पे नाज है . . . . . .
किसी के काम आना,
और उस एहसान का,
फायदा उठाना भी लोग जानते हैं।
मतलबी लोग हैं,
काम निकल जाये तो फिर,
बगल से गुजर जाओ कहां पहचानते हैं।
हर शख्स को इंसान समझ बैठे थे,
पर जहरीला इतना कि जहर दे देते हैं।
मुझे तो मेरी फितरत पे नाज है . . . . . .
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