मुझे ज़मीर यूँ कचोटता है
के हर गुनाह को टटोलता है
मुझे ज़मीर यूँ कचोटता है
मिरे खुदा मिरे गुनाह बख़्श
तू नेक हो जा, दिल ये बोलता है
उसे बशर भले न माने चाहे
उसे पता है तू जो सोचता है
हिसाब दर्ज़ हैं बही में उसकी
तुला में पाप सारे तोलता है
भले क़बूल मत करो गुनाह
ज़मीर राज़ गहरे खोलता है