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18 Jan 2021 · 1 min read

मुझे ज़मीर यूँ कचोटता है

के हर गुनाह को टटोलता है
मुझे ज़मीर यूँ कचोटता है

मिरे खुदा मिरे गुनाह बख़्श
तू नेक हो जा, दिल ये बोलता है

उसे बशर भले न माने चाहे
उसे पता है तू जो सोचता है

हिसाब दर्ज़ हैं बही में उसकी
तुला में पाप सारे तोलता है

भले क़बूल मत करो गुनाह
ज़मीर राज़ गहरे खोलता है

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