मुझे गद्दार कहना तुम
जो छींनू मैं तेरी रोटी मुझे गद्दार कहना तुम,
मुकर जाऊँ कभी वादे से तो मक्कार कहना तुम।
मुझे इल्जाम न दो आज ही इस बात की खातिर,
न जां मैं भी लुटा दूँ तुझ पे तो धिक्कार कहना तुम।
यही बातें जो उनकी आज भी हमको सताएं हैं,
चला तलवार गरदन पे नमक उसपे लगाएं हैं।
सुनो मगरूर हाकिम तुम भी अब ये याद ही कर लो,
मिटा देगें तुझे हम एक दिन जैसे बनाएं हैं।
जटाशंकर “जटा”
१६-०१-२०२०