* मुझे क्या ? *
* मुझे क्या ? *
लेखक : डॉ अरुण कुमार शास्त्री – पूर्व निदेशक – आयुष – दिल्ली
दुराग्रही से शास्त्रार्थ में जीता कौन ?
मुँह पर उँगली रख लो भाई ,
हो जाओ तुम मौन ।
विषय कोई हो, बात कोई हो ।
तर्क व्यर्थ है यही समझ लो ।
शिक्षित हो या निपट अनपढ़ ।
हो जाएगी देखो तकरार ।
मैंने पूछा दुराग्रही से ,
कैसे ये कर पाते हो ?
तुरत – फुरत ही उत्तर आया ।
बिन सोचे भिड़ जाते हैं ।
तर्क , कुतर्क , और सतर्क ज्ञान की ,
हम भाषा अपनाते हैं ।
हार हमारी हो नहीं सकती ,
लो तुम सोलह आने मान ।
दुराग्रही से शास्त्रार्थ में जीता कौन ?
मूँह पर उंगली रख लो भाई ,
हो जाओ तुम मौन ।
इनकी भाषा निपट अघोरी ।
इनके लक्षण सतत अबोधी ।
दिखने में बौड़म से लगते ।
बहस अगर हो फूल से खिलते ।
चंचल आँखें , मुँह वाचाल ।
आंख तो देखो लोमड़ी जान ।
त्वचा स्निग्ध और हर्षित लोम ।
नख शिख दिखते सूनी नीम