मुझे इन लम्हों को जीने दो
कुछ लम्हे मशहूर हुए और
कुछ लम्हे बेजार हुए।
कुछ तो दिल में समा गए और
कुछ लम्हे बेकार हुए।
मशहूर हुए इन लम्हों से अब,
चाक जिगर के सीने दो।
मुझे इन लम्हों को जीने दो।
मुझे इन लम्हों को जीने दो।
मंदिर में,जब घंटा बाजे,
और मस्जिद में हो अजान।
गुरुद्वारे अरदास करें जब,
तब, मन से रहने दो इंसान।
मजहब की दीवार गिराकर,
ऊँच-नीच का भेद मिटाकर,
सबको अब खुश रहने दो।
मुझे इन लम्हों को जीने दो।
मुझे इन लम्हों को जीने दो।
न जाने क्यूँ, अंजान डगर है,
न जाने ये कैसा सफर है?
हर सफर में मुश्किल बड़ी है,
इम्तिहान लेती ज़िन्दगी खड़ी है।
साथ न दे जब कोई अपना,
खुद को ही दामन सीने दो।
मुझे इन लम्हों को जीने दो।
मुझे इन लम्हों को जीने दो।