मुझे आज़ाद ज़मीं के पन्नों को पढ़ना हैं
मुझे आज़ाद ज़मीं के पन्नों को पढ़ना हैं
मुझे भी दीदार-ए-संविधान करना है
ये नफ़रत की राजनीती अब देखी नहीं जाती
मुझे भी राजनीती के कुछ हिस्सों को बदलना है
आओ जमकर कहें बुरा जो जितना बुरा है
क्यों हमें भी नफ़रत की आग में जलना है
जिनके बहे लहू उनकी याद नहीं मिटने देंगें
बस यही जोश अपने देश में भरना है
क्यों डरें किसी के डराने से अब हम
अब तो बस आस्तीन के सांप को डरना है।