मुझे आशीष दो, माँ
माँ !
तुम यहाँ हो, हो न माँ !
तुम यहीं हो, है न माँ!
जहाँ मैं हूँ, है न माँ !
तुम जहाँ हो, वहीं मैं भी हूँ
तुम्हारे साथ मैं हूँ
मेरे साथ तुम हो
तुम से अलग मेरा
न तो कोई जमीं है
न तो कोई आसमां है
न कोई अस्तित्व है
न कोई पहचान है
तुम्हारी आँचल से थोड़ा ही बड़ा
भारत – माता का आँचल है
जिसके नीचे हम सभी सुरक्षित हैं
मैं भी हूँ.
जिसका मैं सिपाही हूँ, सीमा पर हूँ
किसी दिन काम आ गया तो
पूत से सपूत बन जाऊंगा.
जिस घर में तुम रहती हो
वही मेरा घर है
तुम जिस देश में रहती हो
वही मेरा देश है
आपदा के समय
कभी देश, कभी मेरा राज्य
घर तक ले आता है
मुझे मेरी माँ से मिला देता है
यह रिश्ता, दर्द का रिश्ता है
यहाँ अपनापन है
भावना है, भाव है
दर्प का अभाव है.
तुम गणेश की पार्वती हो
राम की कौशल्या हो
हनुमान की अंजनी हो
कृष्ण की देवकी, यशोदा हो
पैगम्बर की अब्दुल्लाह इबन हो
नानक की तृपता देवी हो
सिद्धार्थ की माया देवी हो
माँ मरियम हो
तुम्हारी चरणों में ही चारों धाम है
तुम ममतामयी हो, कल्याणी हो
करुणामयी हो, आराध्या हो।.
तुमने जो मुझमें रंग भरे
संस्कार बनकर उभर पड़े
किसी और से तुलना क्या करना?
तुम अतुलनीय हो, समादृता हो
चरणों में झुका हूँ मैं
उठा लो, मुझे आशीष दो, माँ !
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@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर l