मुझे अपने हाथों अपना मुकद्दर बनाना है
मुझे अपने हाथों अपना मुकद्दर बनाना है,
जो फैली है जग में उस नफ़रत को मिटाना है।
जुबां मेरी यूं ही नहीं करती लोगों से वादें हज़ार,
ये जानती है किसी से किया वादा कैसे निभाना है।
स्वार्थ में डूबकर जहां अपने ही छीन रहे है खुशियां,
वहां मुझे उदास हर एक चेहरे पर मुस्कान लाना है।
निराशा के पथ पर आशा का दीप जलाना है,
मुझे जिंदगी की राहों पर बहार-ए-चमन बिखेरना है।
दिलों में मैल रख जहां लगते है गले एक दूजे के लोग,
वहां मुझे अपनी वफाओं से बेवफाई को मिटाना है।
छोड़ गए तन्हा मुझे बीच मझदार में ही अपने मेरे,
मुझे यहां से अपना रास्ता अब खुद बनाना है।
– सुमन मीना (अदिति)