मुझे अच्छी लगती
निकल कर रसोईघर से
बैठती दो पल।
निकाल अपनी डायरी,,,
अपनी कविताओं से बातें करती कि,
क्यों तुम मुझको इतनी अच्छी लगती?
सुना कर मेरा प्रश्न
बोल उठी मेरी कविता मुझसे,,
समय नहीं तुमको मिलता,,,
फिर भी तुम अपने मन के भावों को
काव्य रूप में लिखती।
संवेदनाएं, भावनाएं
मजबूरियां, तन्हाइयां
आस-पास की घटनाएं,
थाम कलम
कागज पर उकेर
उमड़े भावों को कविता का रूप देती,
उगते सूरज की कहानी
कठिनाई भरी जिंदगानी
हौंसले की चाह
कामयाबी की राह
लिख कर मंजिल देती।
जीवन के सुख दुख को
मस्ती मजाक के पल को,
अक्षरों मे समेट लेती और
कविताओं के सांचे में डाल देती।
प्रेम , वियोग
मिलन क्षोभ
आशा ,निराशा
सत्य असत्य
मानव मूल्यों की वृद्धि
अपनी कविताओं में लिखती।
करूणा, प्रार्थना,
दया, ममता,
नेह , दुलार,मन मौन कथा
दिल में उपजे अहसास
किसी अपने का मिलन बिछडना
उकेर कागज पर
कविता के वृक्ष खड़े करती,,
फिर भला !क्यूं न तुम्हें अपनी कविताओं अच्छी लगती…
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान