मुझसे मेरा मन कहता है…
मुझसे मेरा मन कहता है…..
मुझसे मेरा मन कहता है ,
तू क्यों इतना उदास होता है…!
तुझे मिली एक शम्मा थी ,
जला के देखा तो ,
जला के बुझी थी
रह गया अब गुमनाम अंधेरा ,
सिर्फ धुआं होता है ,
इस अंधेरे से गुजरने पर ,
यही तो एक धोखा होता है…!
मुझसे मेरा मन कहता है ,
तू क्यों इतना उदास होता है…!
चोट खाकर दिल तड़प उठा ,
एक सबक मिला जो ,
मैं आज कह उठा
ना कह सकूं तो दर्द होता है ,
कहना चाहूं तो ,
मेरी वफाओं का तौहीन होता है…!
मुझसे मेरा मन कहता है ,
तू क्यों इतना उदास होता है…!
दिन तो यूं ही निकलते रहेंगे ,
शाम यूं ही ढलते रहेंगे ,
सारी दुनिया मानती है ,
यह तू भी जानता है ,
स्याह काली रात के बाद आखिर ,
फिर नया सबेरा होता है…!
मुझसे मेरा मन कहता है ,
तू क्यों इतना उदास होता है…!!
चिन्ता नेताम “मन”
डोंगरगांव (छत्तीसगढ)