मुझसे टकरा के बिखर जाते है
नहाकर जब जुल्फ झटकते हैं
दिल ए जज्बात उभर जाते हैं
सज संवर सामने पड़ जाते है
इश्क ए रंग भी गहरा जाते हैं
सहर ए बाग को जब जाते हैं
हर शय ए बाग महक जाते हैं
सरूर यूं बढ़ जाता है जब वो
मुझसे टकरा के बिखर जाते है
खुशियां ही खुशियां पा जाते हैं
सिमट कर मुझमें समा जाते हैं
लक्ष्मण सिंह
जयपुर