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1 Feb 2021 · 1 min read

मुझसे क्यूं पून्छ्ते हो

DR ARUN KUMAR SHASTRI // EK ABODH BALAK // ARUN ATRIPT

मेरे हिस्से का आसमान
जो दिखता है छ्लावा है //
उसमें तेरा उसका उनका
इसका भी आसमान आता है //

मै उठा तडके तडक
भोर से बहुत पहले
सूरज तब पश्चिम में था
कदम बढाया वापिस आया
तब तक वो दक्षिण में था //

फिर भी मैने परंपरागत
उद्वोधन कर नमन किया
अपनी छ्त को छूने को
अनथक प्रयत्न किया //

इस कोशिश में उम्र ढल गई
दो प्रहर के संसाधन जोड़ते जोड़ते
एक सदी ही निकल गई /
बीच 2 अनेको ओंन लाईन
गुरु मिल गये तो
जपो जप करतल
छवि बिगड़ गई /

साध न पाया साधन को
जबतक कदम बढाया वापिस
आया तब तक वो दक्षिण में था //
ऐसे बीता जीवन मेरा /
तेरी तो मै जानू ना
ढूँढ रहा अपने जीवन को
मदद किसी से मांगू ना //
***********************************

Language: Hindi
2 Likes · 239 Views
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