मुझको ये जीवन जीना है
रीते थे स्वप्न अभी तक जो
आशाएं थी कुम्हलाई सी ।
अवधान हटा सब पथ के अब
मुझको ये जीवन जीना है ।
कितने बसन्त निष्काम हुए
जीवन रंगों से भरने में ।
रंगहीन तूलिका में रंग भर
मुझको ये जीवन जीना है ।
पाषाण ढहे हैं तम के अब
छाया जिससे उल्लास घना ।
नीरवता में नव स्वर भर कर
मुझको ये जीवन जीना है ।
निज कर्तव्यों की वेदी पर
कितना कुछ बलिदान हुआ ।
कुछ प्राप्त हुए अधिकारों संग
मुझको ये जीवन जीना है ।
अब हटा आवरण मिथ्या का
मुझको मुझ सा ही होना है ।
कहती सांसों की ये प्रतिध्वनि
मुझको ये जीवन जीना है ।