मुझको मेरा यार लौटा दे
ओ हक़ीक़तों की दुनिया
मुझको मेरा यार लौटा दे
संग हवा के खेलता था जो
वैसा ही अखबार लौटा दे।
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जाने किन रंगों से तुमने
उसका वर्ण भिगो दिया है
दिखलाकर कितने मोती
सपनों मे यूं डुबो दिया है
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हमने भी तो खेली थी वो
बिन रंगों की एक होली,
बिन फागुन आया था जो
फिर से वो त्योहार लौटा दे।
मुझको मेरा यार लौटा दे।
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कदमों को लंबा करके वो
भाग दौड़ करता है अब
भूल गया पंखो का करतब
रातों को भी चलता है अब
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हमने भी तो काटी थी राते
नापे थे जाने कितने विवर
तोड़ रही है दम अपना जो
फिर से वो पुकार लौटा दे।
मुझको मेरा यार लौटा दे।
© सत्येंद्र कुमार