– मुझको बचपन लौटा दो –
मुझको बचपन लौटा दो –
वो उन्मुक्त गगन की सैर करना,
न किसी बात का दुख न ही किसी चिंता में रहना,
मदमस्त
रहना,मनमौजी होना,
न कमाने की चिंता न बचाने का ख्याल,
न कोई भेद न ही कोई अलगाव का भाव,
जाति संप्रदाय, धर्म के बंधनों से मुक्त जीवन,
न ही किसी बंदिश का जंजाल,
न ही कोई जीवन की आपधापी ,
न ही कोई कुविचार,
बड़े होने पर सब जंजालों में उलझा हुआ पाना ,
कराता भरत को दुख का एहसास,
इसलिए गहलोत करता ईश्वर से बस इतनी सी अरदास,
भरत को बचपन लौटा दो,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान