मुझको निभाना होगा अपना वचन
मैं जिस घर की तलाश में था।
वह घर आज मुझको मिल गया।।
मैं जिस मंजिल के इंतजार में था।
उस पायदान पर मैं आज पहुंच गया।।
मेरे सपनों में था, जो चमन फूलों का।
वह मुस्कान फूलों की, मुझको मिल गई।।
मैं चाहता था जहाँ पर, शान्ति पाना।
वह पनाह मुझको, यहाँ मिल गई।।
मैं देखना चाहता था, सभ्यता की सरिता।
उस संस्कृति की गंगा, यहाँ बह रही है।।
मुझको चाहिए थी, वह छत- वह आसमां।
जिसके नीचे सुरक्षित हो, सबका जीवन।।
वह छाँव आज मुझको, यहाँ नजर आई।
मैं चाहता था जो जमीं, जो परस्ती खूं में।।
वह हिन्द परस्ती, मुझको यहाँ मिल गई।
बस यही तमन्ना है कि, कायम रहे यह हस्ती।।
मुझको निभाना होगा, अपना वचन।
ताकि यह जिन्दा रहे, कल भी यह सब।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)