मुज़रिम सी खड़ी बेपनाह प्यार में
गुम शुम बैठी रही मैं सुबह शाम में
नैन आँसू उदासी कैसे भेजू पैग़ाम में
दिल डूबा हुआ मेहबूब याद में
इश्क़ की जंजीर तोड़े किस ख्यालें आजाद में
उह आहे बनी, ऋतु तरुण्य श्रृंगार में
सांसे थम सी गई गुलशने बहार में
कुबूल कैसे करूँ ये, गुनाह एतबार में
मुज़रिम सी खड़ी बेपनाह प्यार में
एक टक सी मनोरम निहारे सखी
ख्याल आये तो देखूँ सितारें सखी
भोर की सलवटें अब घबराहट बनी
तूफानी लहरों सी मन में आहट बनी
जिंदगी ए मंजिल तेरे नाम में
पल दो पल के एहसास दे दो ईनाम में
बरसों बैठी रहूँ में तेरे इंतजार में
मुज़रिम सी खड़ी बेपनाह प्यार में