Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Apr 2018 · 1 min read

मुजरिम तुम…..

मुजरिम तुम…..
मुजरिम हो मेरे मन की अदालत में…
ऐसा क्यों है कि सम्पूर्ण होकर भी अपूर्ण हूँ मैं,
और तुम अपूर्ण होकर भी. ..हो गये सम्पूर्ण !
क्यों ये नियति है ..नारी की इसलिये ??
क्यों वो सहे पीड़ा बार – बार इस जीवन की ??
जब जीवन में आती कोई कठिन सी बेला…
तुम खामोश या तटस्थ रहते हो हर बार ..
सब कुछ छोड़ उदासीन हो तथागत सा बन जाते हो ….
तुम वैज्ञानिक बन नूतन खोज किया करते हो…
भ्रम का ही सही धरा –गगन का मिलन करा सकते हो..
चाँद –तारों की गणना का ..गुणन तुम कर सकते हो..
पर क्या मेरे मन की सालों तपती …
रेत पर सतरंगी ..फूल खिला सकते हो??
नित – नूतन वैज्ञानिक कृति पर
तुम्हारा अहं विकसित हो सकता है..
और मेरा अस्तित्व सिरे से ..नकार सकता है..
किंतु स्मरण रहे …मैं जरूरी हूँ…
तुम्हारी बड़ी से बड़ी ये सफलताएँ..
मेरे समकक्ष खड़ी नहीं हो सकती ..
कि तुम्हारी कोई भी कल्पना..
मेरे सत्य से बड़ी नहीं हो सकती..
मैंने तुम्हारी सृष्टि को नित दृष्टि दी..
तुम्हारी सोच को मैने ही पंख लगाए…
मुझे विष भी स्वीकार्य है और समस्त पीड़ाएँ भी..
क्योंकि मैं धरती सी हूँ .सब कुछ सह सकती हूँ..
तुम सुनो न सुनो पर एक बात .कहना चाहती हूँ केवल तुमसे …
मनुष्य देवता बन जाता है ..निष्काम चाहत में..
तुम स्वीकार करो न करो पर….
तुम मुजरिम हो मेरे मन की अदालत में….

…..अमृता निधि

Language: Hindi
409 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
चमत्कार को नमस्कार
चमत्कार को नमस्कार
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
गाँव का दृश्य (गीत)
गाँव का दृश्य (गीत)
प्रीतम श्रावस्तवी
दो हज़ार का नोट
दो हज़ार का नोट
Dr Archana Gupta
श्री राम! मैं तुमको क्या कहूं...?
श्री राम! मैं तुमको क्या कहूं...?
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
नया साल
नया साल
'अशांत' शेखर
जब हम सोचते हैं कि हमने कुछ सार्थक किया है तो हमें खुद पर गर
जब हम सोचते हैं कि हमने कुछ सार्थक किया है तो हमें खुद पर गर
ललकार भारद्वाज
■ संजीदगी : एक ख़ासियत
■ संजीदगी : एक ख़ासियत
*Author प्रणय प्रभात*
कभी छोड़ना नहीं तू , यह हाथ मेरा
कभी छोड़ना नहीं तू , यह हाथ मेरा
gurudeenverma198
हजारों मील चल करके मैं अपना घर पाया।
हजारों मील चल करके मैं अपना घर पाया।
Sanjay ' शून्य'
मानवता
मानवता
विजय कुमार अग्रवाल
आसमानों को छूने की चाह में निकले थे
आसमानों को छूने की चाह में निकले थे
कवि दीपक बवेजा
*लहरा रहा तिरंगा प्यारा (बाल गीत)*
*लहरा रहा तिरंगा प्यारा (बाल गीत)*
Ravi Prakash
अक्सर यूं कहते हैं लोग
अक्सर यूं कहते हैं लोग
Harminder Kaur
"स्मार्ट कौन?"
Dr. Kishan tandon kranti
सजी कैसी अवध नगरी, सुसंगत दीप पाँतें हैं।
सजी कैसी अवध नगरी, सुसंगत दीप पाँतें हैं।
डॉ.सीमा अग्रवाल
तीखा सूरज : उमेश शुक्ल के हाइकु
तीखा सूरज : उमेश शुक्ल के हाइकु
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
सोचो यदि रंगों में ऐसी रंगत नहीं होती
सोचो यदि रंगों में ऐसी रंगत नहीं होती
Khem Kiran Saini
शिव स्तुति
शिव स्तुति
मनोज कर्ण
संन्यास के दो पक्ष हैं
संन्यास के दो पक्ष हैं
हिमांशु Kulshrestha
अहसास
अहसास
Sandeep Pande
साहिल समंदर के तट पर खड़ी हूँ,
साहिल समंदर के तट पर खड़ी हूँ,
Sahil Ahmad
उदासियाँ  भरे स्याह, साये से घिर रही हूँ मैं
उदासियाँ भरे स्याह, साये से घिर रही हूँ मैं
_सुलेखा.
राजनीति का नाटक
राजनीति का नाटक
Shyam Sundar Subramanian
World Blood Donar's Day
World Blood Donar's Day
Tushar Jagawat
चाहत में उसकी राह में यूं ही खड़े रहे।
चाहत में उसकी राह में यूं ही खड़े रहे।
सत्य कुमार प्रेमी
दिल से रिश्ते
दिल से रिश्ते
Dr fauzia Naseem shad
मैं इक रोज़ जब सुबह सुबह उठूं
मैं इक रोज़ जब सुबह सुबह उठूं
ruby kumari
*मधु मालती*
*मधु मालती*
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
विषय -परिवार
विषय -परिवार
Nanki Patre
किसान,जवान और पहलवान
किसान,जवान और पहलवान
Aman Kumar Holy
Loading...