मुजरालय
पायल की छन छन
चूड़ियों की खन खन
तबले की थप थप
घुंघरूओ की छनन छनन
नृत्य और संगीत का रस
काम का सिंगार का रस
या यूं कि कहो मदिरालय
या कहो मुजरालय
आम बस्ती से अलग बसी
वो मशहूर वो बदनाम गलियां
जानता है हर शरीफ शख्स पर
फिर भी है वो गुमनाम गलियां
न बिजली न पानी न सड़कें
ना ही कोई विद्यालय न शिवालय
जहां आबाद है ये मुजरालय
जीने का हक तो है इन्हें
पर जिंदगी तो कही है नहीं
सूरज रोज निकलता है यहां
धूप भी आती है आंगन में
पर रोशनी तो कही है नहीं
ललचा रही है एक तितली
हवस के भूखे भवरों को
जिसे उड़ना चाहिए फूलों पर
वो आ पहुंची है मुजरालय