मुजफ्फरपुर से
मुजफ्फरपुर से
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आसमान में गूंजती
मुजफ्फरपुर के बच्च्चों की
दर्दनाक चीखें
रोते हुए घर से निकली
सकरी गली से गुजरती
शासकीय अस्पताल में आकर
एक दूसरे से मिली
कांपती, सिसकती
मासूम बच्चों की सांसें
न जाने कितने घंटे, दिन
अपने बचे रहने के लिए
गिड़गिड़ाने लगीं
बच्चों की कराह को अनसुना कर
नयी योजनाओं को लागू करने का
फोटो खिंचवाते समय
स्वांग रचते रहै
हमारे नेता
अब कोई इन बच्चों के करीब आता है
छू कर महसूसता है इनका दर्द
छनछना जाती हैं आंखें
बूंदें टपक कर
बिखेर देती हैं जमीन पर
सारी अव्यवस्थायें
कि, देखो
बच्चों के रिसते हुए खून पर
राजनीति करने वाले
संसद में बैठकर
बच्चों की मौत का मातम मनायेंगे
अभी- अभी खबर मिली है
कि, मौत से जूझते बच्चों के चेहरों पर
चाहतों की आंखें बिछ गयी हैं
मुस्तैद हो गयी हैं
कैमरों की आंखें
खींच रही हैं फोटो
पहले नेगेटिव फिर पाजिटिव
निगेटिव, पाजिटिव के बीच
फैले गूंगेपन में
चीख रहैं हैं बच्चे
चीख रहा है
मुजफ्फरपुर
बेआवाज़
फोटो गवाह है कि
मुजफ्फरपुर चीख रहा है
देश चीख रहा है
गूंगी फोटो
अखबार के मुखपृष्ठ पर चीख रही है
चीखती रोती बिलखती
मायें
अपने बाहर निकलते कलेजे को थामें
हर आगंतुक के सामने
आंचल फैलाए
चीख रहीं हैं
पूंछ रही हैं
क्या ? कोई
बच्चों को जिंदा रखने का
उपाय बतायेगा–
“ज्योति खरे”