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2 Jul 2021 · 1 min read

मुख मोड़ूँ नहीं

चाहे दुखों के तीर बेधो,
या मेरे मग को ही रोधो।
संग-संग तेरे चला चलूँ,

छोड़ू नहीं छोडूं नहीं,
हे देव ! मुख मोड़ूँ नहीं |

हो अगम्य दुस्तर मार्ग किंतु,
ना टूटे मम अनुराग तंतु
तनिक नहीं हो किंतु परंतु ।

नेह बंध तोडूं नहीं,
हे देव! मुख मोड़ूँ नहीं ।

कर्तव्य से लद भाल मेरे,
विपद-बरछे बरसे घनेरे।
बिंध कर भी,पथ सहजता से

छोड़ू नहीं छोडूं नहीं
हे देव! मुख मोड़ूँ नहीं

जब कभी तेरे द्वार आऊँ,
भव बंधनों के पार आऊँ
निर्विकार हो; तव मान कभी

बोरूँ नहीं, बोरूँ नहीं
हे देव! मुख मोड़ूँ नहीं।

©सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’

Language: Hindi
1 Like · 222 Views
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