मुख मोड़ूँ नहीं
चाहे दुखों के तीर बेधो,
या मेरे मग को ही रोधो।
संग-संग तेरे चला चलूँ,
छोड़ू नहीं छोडूं नहीं,
हे देव ! मुख मोड़ूँ नहीं |
हो अगम्य दुस्तर मार्ग किंतु,
ना टूटे मम अनुराग तंतु
तनिक नहीं हो किंतु परंतु ।
नेह बंध तोडूं नहीं,
हे देव! मुख मोड़ूँ नहीं ।
कर्तव्य से लद भाल मेरे,
विपद-बरछे बरसे घनेरे।
बिंध कर भी,पथ सहजता से
छोड़ू नहीं छोडूं नहीं
हे देव! मुख मोड़ूँ नहीं
जब कभी तेरे द्वार आऊँ,
भव बंधनों के पार आऊँ
निर्विकार हो; तव मान कभी
बोरूँ नहीं, बोरूँ नहीं
हे देव! मुख मोड़ूँ नहीं।
©सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’