मुख पर जिसके खिला रहता शाम-ओ-सहर बस्सुम,
मुख पर जिसके खिला रहता शाम-ओ-सहर बस्सुम,
दीवाने हुए हैं उसके मेरा मुहल्ला एहतराम,
चमके मुखड़ा ऐसा ज्यों चौदहवीं का हो चांद,
निकलो जो गली से यूं महके जैसे साबून हमाम,
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
मुख पर जिसके खिला रहता शाम-ओ-सहर बस्सुम,
दीवाने हुए हैं उसके मेरा मुहल्ला एहतराम,
चमके मुखड़ा ऐसा ज्यों चौदहवीं का हो चांद,
निकलो जो गली से यूं महके जैसे साबून हमाम,
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”