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11 Aug 2020 · 1 min read

मुख खोलत दुइ दतिया

मुख खोलत दुइ दतिया चमकें, बलि जाऊ लला मुंह खोलनकी,
अटके अटके करते बतिया , हुइ हौं दीवानी उन बोलन की।
निज भाग सराहत है वनिता, पहुनाइ करै मनमोहन की ,
जबहू जनमूं ब्रज में जनमूं, इह साध रही प्रभु मो मन की ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Language: Hindi
2 Likes · 10 Comments · 315 Views
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