मुख खोलत दुइ दतिया
मुख खोलत दुइ दतिया चमकें, बलि जाऊ लला मुंह खोलनकी,
अटके अटके करते बतिया , हुइ हौं दीवानी उन बोलन की।
निज भाग सराहत है वनिता, पहुनाइ करै मनमोहन की ,
जबहू जनमूं ब्रज में जनमूं, इह साध रही प्रभु मो मन की ।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
मुख खोलत दुइ दतिया चमकें, बलि जाऊ लला मुंह खोलनकी,
अटके अटके करते बतिया , हुइ हौं दीवानी उन बोलन की।
निज भाग सराहत है वनिता, पहुनाइ करै मनमोहन की ,
जबहू जनमूं ब्रज में जनमूं, इह साध रही प्रभु मो मन की ।
जयन्ती प्रसाद शर्मा