Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Jul 2022 · 5 min read

*मुख्य अतिथि (हास्य व्यंग्य)*

मुख्य अतिथि (हास्य व्यंग्य)
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
ऐसी भी क्या जिंदगी कि आदमी रिटायर हो जाए और किसी समारोह में मुख्य अतिथि के पद को सुशोभित करने के लिए आमंत्रित भी न किया जाए ? अब अपने ही रिटायरमेंट समारोह में फूलमाला पहन कर बैठा हुआ है और अपने रिटायर होने का इंतजार कर रहा है। रिटायर होने के बाद मुख्य अतिथि बनने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं।
आमतौर पर लोग पद को मुख्य अतिथि बनाते हैं । व्यक्ति को कौन पूछता है? जब पद नहीं रहा तो फिर मुख्य अतिथि का पद भी भला कैसे मिल सकता है ? कई बार मुख्य अतिथि उन लोगों को बनाया जाता है ,जो कुछ मोटी रकम दान दक्षिणा में देकर जाते हैं । कई बार पहले से बात पक्की कर ली जाती है कि साहब ! इतने रुपए मुख्य अतिथि से लेने की हमने सोची है। आपकी जेब में पड़े हों तो मुख्य अतिथि बनकर आ जाना ,वरना साफ-साफ मना कर दो । कई जगह तो बाकायदा बोली लगती है । मुख्य अतिथि एक ! मुख्य अतिथि दो ! मुख्य अतिथि तीन ! …कहने से पहले ही बोली बढ़ जाती है । अंतिम बोली जिसकी सबसे ज्यादा होती है ,उसके पक्ष में जाती है और वह मुख्य अतिथि बनकर मूछों पर ताव देता हुआ पद पर विराजमान हो जाता है ।
मुख्य अतिथि का भाषण सब जगह बोर होता है । उसे कौन सुनना चाहता है ? आयोजक अपनी इज्जत का वास्ता देकर श्रोताओं और दर्शकों से कुर्सी पर बैठे रहने का विनम्र अनुरोध करते हैं । उनके सामने आर्थिक तकाजा होता है । अगर मान लीजिए मुख्य अतिथि की हूटिंग हो गई और वह नाराज होकर अपने दिए गए पैसे वापस मांगने पर अड़ जाए ,तब संस्था और संगठन का तो दिवाला पिट जाएगा । सबसे ज्यादा चेहरे पर मुस्कुराहट आयोजक ओढ़ते हैं । मुख्य अतिथि का भाषण वह किसी संत के प्रवचन जैसा सुनते हैं । एक-एक शब्द गहराई में डूब कर बीच में जहां मौका हुआ, ताली बजाने से नहीं चूकते । वाह – वाह जैसे शब्द जितनी जल्दी हो सकता है ,वह अपने मुंह से बाहर कर देते हैं । कौन जाने मुख्य अतिथि का भाषण कब रुक जाए और आयोजक मुख्य अतिथि की प्रशंसा के महान सौभाग्य से वंचित रह जाएं ।
कई छुटभैये टाइप लोग जुगाड़ करते हैं कि किसी कार्यक्रम में उनको मुख्य अतिथि बना लिया जाए । कई बार “ओरिजिनल मुख्य अतिथि” किसी कारणवश समारोह में उपस्थित नहीं हो पाता है । तब ऐसे में श्रोताओं में से जिसके कपड़े साफ-सुथरे ,प्रेस किए हुए और चेहरा नहाया हुआ जान पड़ता है ,उसे पकड़कर आयोजक मुख्य अतिथि के आसन पर बिठा देते हैं। इसलिए समारोह में जिनको मुख्य अतिथि नहीं बनाया गया है ,उन्हें भी अच्छे कपड़े पहन कर जाना चाहिए। हो सकता है बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने और मुफ्त में मुख्य अतिथि का आनंद उठाने को मिल जाए ।
कई लोगों को जब पंद्रह दिन पहले मुख्य अतिथि पद सौंप दिया जाता है, वह पूरे पखवाड़े गहरे तनाव में रहते हैं । सड़क पर भी चल रहे हों तो आप उनके चेहरे की चिंताओं को देखकर अनुमान लगा सकते हैं कि यह सज्जन जरूर निकट भविष्य में किसी मुख्य अतिथि के आसन को सुशोभित करने वाले हैं । कई लोगों से ऐसे व्यक्ति गुपचुप तरीके से पूछते भी हैं कि “भैया ! पहली बार मुख्य अतिथि हमको बना दिया गया है । इसमें क्या करना होता है ? ” कुछ लोग मजा लेने के लिए उनसे कह देते हैं कि भाई साहब ! मुख्य अतिथि के लिए अचकन पहन कर जाना बहुत जरूरी होता है । वह सज्जन एक तो पहले से ही टेंशन में होते हैं, ऊपर से उनके पास क्योंकि अचकन भी नहीं होती है अतः वह और भी परेशान हो उठते हैं। फिर वह पूछते हैं हम कई कार्यक्रमों में गए हैं ,वहां मुख्य अतिथि अचकन पहने हुए नहीं थे ? उनको बताया जाता है कि जब सबके पास अचकन नहीं है और सिलवाने के लिए पैसे भी नहीं है तो बिना अचकन के ही काम चला लिया जाता है । वह भी आमतौर पर बिना अचकन के काम चला लेते हैं ।
मुख्य अतिथि आजकल मंच पर विराजमान अपनी स्थिति का एक फोटो सोशलमीडिया पर अवश्य डालते हैं । इससे फायदा यह रहता है कि उनका सोशल स्टेटस सबको पता लगने लगता है। दूसरा फायदा यह है कि आदमी नजर में आता है। चार लोगों को पता चल जाता है कि यह मुख्य अतिथि बन चुके हैं । अब समाज में जरूरत तो पड़ती ही रहती है। समारोह भी होते हैं और उनमें मुख्य अतिथि बनाने की एक परंपरा होने के कारण किसी को तो बनाना ही पड़ता है । जब एक आदमी का नाम दिमाग में रहता है कि यह मुख्य अतिथि बन चुके हैं तब उनसे संपर्क करके उनको मुख्य अतिथि बनाने में सुविधा रहती है। आदमी मना भी नहीं कर सकता कि मैं मुख्य अतिथि नहीं बनूंगा । लोग कह सकते हैं कि अमुक वर्ष के अमुक महीने की अमुक तारीख को आप अमुक संस्थान में मुख्य अतिथि बने थे । हमसे मना क्यों कर रहे हैं ?
वैसे सच पूछो तो मुख्य अतिथि बनने से मना कोई भी व्यक्ति दिल से नहीं करता । औपचारिकतावश एक या दो बार मना जरूर करता है । कुछ लोग एक बार मना करते हैं ,लेकिन जब आयोजकों को दुविधा में देखते हैं तो तुरंत पलटी मार लेते हैं और कह देते हैं कि जब आपका इतना आग्रह है तो हम मुख्य अतिथि बन जाते हैं। उनको दरअसल यह भय रहता है कि अगर दूसरी बार भी औपचारिकतावश ना-नुकर की ,तो कहीं पत्ता न कट जाए !
कुछ लोगों को ईश्वर की कृपा से हर एक-दो दिन बीच मुख्य अतिथि बनने का अवसर प्राप्त होता रहता है । कुछ लोग जब मंत्री बनते हैं ,तब दिन में तीन बार अलग-अलग समारोह में मुख्य अतिथि बनाए जाते हैं । एक बार एक मंत्री जी का आगामी दस दिन का कार्यक्रम पहले से तय था । रोजाना उन्हें तीन या चार स्थानों पर मुख्य अतिथि बनाया गया था । संयोगवश मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ और मंत्री पद उनके हाथ से फिसल गया । अगले दिन से उनके पास फोन आने शुरू हो गए ,जिसमें कहा गया था कि आपको हमने जिस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाया था ,वह कार्यक्रम स्थगित हो गया है । यह बहुत शिष्टाचार पूर्वक किसी को यह बताने वाली बात होती है कि अब आप मंत्री नहीं रहे तो फिर हमारे किस काम के ? आपको मुख्य अतिथि हम क्यों बनाएँ ?
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

187 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
शीर्षक - 'शिक्षा : गुणात्मक सुधार और पुनर्मूल्यांकन की महत्ती आवश्यकता'
शीर्षक - 'शिक्षा : गुणात्मक सुधार और पुनर्मूल्यांकन की महत्ती आवश्यकता'
ज्ञानीचोर ज्ञानीचोर
"उम्मीदों की जुबानी"
Dr. Kishan tandon kranti
तेरी यादों के सहारे वक़्त गुजर जाता है
तेरी यादों के सहारे वक़्त गुजर जाता है
VINOD CHAUHAN
कैसे कहे
कैसे कहे
Dr. Mahesh Kumawat
तस्वीरों में मुस्कुराता वो वक़्त, सजा यादों की दे जाता है।
तस्वीरों में मुस्कुराता वो वक़्त, सजा यादों की दे जाता है।
Manisha Manjari
हिज़्र
हिज़्र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
सकट चौथ की कथा
सकट चौथ की कथा
Ravi Prakash
माँ
माँ
Harminder Kaur
आत्मनिर्भर नारी
आत्मनिर्भर नारी
Anamika Tiwari 'annpurna '
23/175.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/175.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मै स्त्री कभी हारी नही
मै स्त्री कभी हारी नही
dr rajmati Surana
नदी की बूंद
नदी की बूंद
Sanjay ' शून्य'
है कौन वो
है कौन वो
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मिलना था तुमसे,
मिलना था तुमसे,
shambhavi Mishra
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
Piyush Goel
* जगो उमंग में *
* जगो उमंग में *
surenderpal vaidya
आजादी की शाम ना होने देंगे
आजादी की शाम ना होने देंगे
Ram Krishan Rastogi
ग़ज़ल-हलाहल से भरे हैं ज़ाम मेरे
ग़ज़ल-हलाहल से भरे हैं ज़ाम मेरे
अरविन्द राजपूत 'कल्प'
उम्मीद और हौंसला, हमेशा बनाये रखना
उम्मीद और हौंसला, हमेशा बनाये रखना
gurudeenverma198
'आरक्षितयुग'
'आरक्षितयुग'
पंकज कुमार कर्ण
"तब तुम क्या करती"
Lohit Tamta
मानव जीवन की बन यह पहचान
मानव जीवन की बन यह पहचान
भरत कुमार सोलंकी
इक ही नहीं मुमकिन है ये के कई दफा निकले
इक ही नहीं मुमकिन है ये के कई दफा निकले
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मुक्तक
मुक्तक
Neelofar Khan
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
"नग्नता, सुंदरता नहीं कुरूपता है ll
Rituraj shivem verma
**तुझे ख़ुशी..मुझे गम **
**तुझे ख़ुशी..मुझे गम **
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
पुनर्वास
पुनर्वास
Dr. Pradeep Kumar Sharma
अशोक चाँद पर
अशोक चाँद पर
Satish Srijan
#सवाल-
#सवाल-
*प्रणय प्रभात*
Loading...