मुखौटे के पीछे चेहरा
जिंदगी के हर दर्द के आगे मुस्कुराहट का पहरा होता है,
तभी हर नकाब के पीछे कई चेहरों का मुखौटा होता है,
तकलीफ छिपाकर जमाने के लिए कोई जोकर बन जाता है,
तो कोई जोकर का मुखौटा पहन सभी को रुलाता है,
दुर्योधन के किरदार में कोई हमारे लिए कर्ण बन जाता है,
तो कोई कृष्ण को पूज कर भी कंस जैसा बन जाता है,
अपनों के लिए खुदगर्ज बन कोई जहां के लिए बुरा बन जाता है,
तो कोई अपनी झूठी शान खातिर अपनों को भुला देता है,
समाज सेवा की आड़ में कोई काले धंधों को अंजाम देता है,
तो कोई रोबिनहुड के नाम से गरीबों का मसीहा बन जाता है,
संत महात्मा बन कर भी इंसानियत का आदर भी कोई न कर पाता है,
और कोई मौह माया से जुड़ा होकर भी इंसानियत को सर्वोपरि मानता है,
सच में यहां हर एक मुखौटों के पीछे कई चेहरों का अस्तित्व बना होता है,
गिरगिट की तरह हर मौके पर तभी इंसान अपने रंग बदल पाता है,
आदर्शों से परिपूर्ण समाज की यहां हर लब तारीफ करता है,
तारीफों का मुखौटा हटाकर इन्हीं आदर्शों को पिछड़ा बता भुलाया जाता है