मुखौटा
मुखौटा पहने है लोग यहां सच की कैसे पहचान करे
बाहर से अमृत है दिखता अंदर से पूरे गरल भरे
इंसान आज दुर्लभ है जग मे रोज ठगे घर मे मग मे
दिल से पूरे काले है ये बाहर से उजियारे है ये
आज बंचना कर बढते सज्जन तो लाचारे है
ये
सच छिपाने हेतु ही नकाब मुख पर धारे है ये
बेनकाब करना है इनको गलत करे और प्यारे है ये
विन्ध्यप्रकाश मिश्र
नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र
9198989831