मुखिया
कुछ कहना है तो वक़्त रहते कह दो ,
कहीं इस चुप्पी की सियासत में सब कुछ बिखर न जाये
ये घर खून पसीने से बनाया है आपने
तो इन तकरारों में आशियाँ यूँ न उजड़ने दो |
पहला क़दम बनता है अमन का
न हल हो मसला फिर भी –
कुछ तो प्रहार बनते हैं
यूँ कैसे बिखेर देते हैं आप आशियाँ ?
कुछ तो प्रयास बनते हैं |
जब होश आये तो ये चमन कहीं
उजड़ा न मिले ..
अकेले घर नहीं चलता रेशम की डोरों से
अकेले घर नहीं चलता पतंगी धागों से
घर चलाने में मिश्रण चाहिए
ये घर बनाया हुआ है आपका नाज़ों से तो
कोशिश भी आपकी चाहिए |
ये बेटे-बहुओं के कोलाहल में
शांति का मधुर संगीत कहीं दम न तोड़ दे
इससे पहले की घर की दरकी दीवारों का तमाशा
बन जाये –
तुम एक मुखिया हो
उठो तुमको उठना ही होगा
तुमको बचा के रखना ही होगा ये घर
जितना ये घर सबका है
उतना ही तुम्हारा है
फिर कैसे तुम एक कोने में हो ?
कैसे ये घर टूट रहा ?
और तुम मौन दर्शक हो
अब तो उठ जाओ हे मूक – बधिर
इससे पहले भयंकर विस्फोट हो
उठो उठ के संचालन करो
देखो कहाँ कमी रह गयी
लेकिन इस अनमोल घरौंदे को न बिखरने दो |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’
*पतंगी धागा मतलब पतंग का धागा ( रगड़ खाने से शरीर पे भयंकर घाव कर देता है )