मुखिया जी
आज मीरा बहुत ही खुश थी,हो भी खुश क्यों न? स्कूल के समय से ही वह कक्षा में मॉनिटर रह चुकी थी।उसके स्कूल में सभी शिक्षक उसके नेतृत्व क्षमता की सराहना करते थे।उसकी कक्षा उसके नेतृत्व में खेलकूद संगीत अनुशासन पढाई सभी चीजों में अव्वल आती थी।
फिर कॉलेज के दिनों में पढाई के दबाव के बावजूद कॉलेज में होने वाले चुनावों में सर्वसम्मति से उसे छात्राध्यक्ष घोषित कर दिया गया था।हालाँकि शुरू शुरू में उसके घर वाले इसके खिलाफ रहे पर दोस्तों, प्रोफेसर के कहने पर वे लोग मान गए।
ग्रेजुएट तीसरे वर्ष में भी उसके लिए एक रिश्ता आया ,लड़का सरकारी नौकरी में था दिखने में सुंदर ,सुकान्त।घर वालों को और क्या चाहिए था,मीरा को तैयार कर शादी के लिए हाँ कर दी।
मीरा भी माता पिता के आगे कुछ न बोल पाई और उनके इच्छा के आगे हथियार डाल दिया।
इस प्रकार बचपन से ही नेतृत्व करने वाली मीरा घर में बंद होकर रह गयी।
आज कई वर्षों बाद उसके ससुराल के पंचायत क्षेत्र में सीट आरक्षित होने पर उसके पति ने उसको मुखिया के चुनाव में खड़ा होने के लिए कहा तो वह हवाओं में उड़ने लगी।
उसे लगा कि समाज कल्याण की जो इच्छा उसके मन में थी वो इस बहाने पूरी करेगी।
नामांकन हो गया ,जोरों शोरों से प्रचार भी होने लगा,उसका पति एक महीने की छुट्टी पर मदद करने के लिए गाँव चला आया।चुनाव हुआ वह जीत गयीं।लोगों को लग रहा था कि एक पढ़ी लिखी स्त्री जब मुखिया बनेगी तो बेटी बहू की समस्याएं समझेगी।
जीत के बाद लोग बधाई देने आने लगे,साथ ही फूल माला लेकर पहुँचने लगे,मीरा मन ही मन खुश थी,अब बाहर से उसका पति उसे आने के लिए आवाज देगा और सभी उसे बधाई और मुबारकबाद देंगे।
मगर यह क्या सभी लोग उसके पति को माला पहनाकर ,गुलदस्ता हाथों में देकर ,मुबारकबाद दे रहे थे।मीरा को लगा शायद अब उसके पति उसे बुलायेंगे, मगर यह क्या उसके पति अंदर आते हैं और कहते हैं थोड़ा पकौड़ी चाय बना दो ।मिठाई मँगवाने के लिए भेजा है,सबको खुश रखना जरूरी है।
आखिर अब हमलोग मुखिया बन गए हैं न।और फिर मीरा चुपचाप रसोई की ओर यह सोचते हुए बढ़ गयी कि अब रसोई तक ही उसका संसार है।इससे बाहर जाने की कल्पना बेमानी है।