मुक्त
मन की अभिव्यक्ति
उतार कर मन के कैनवास पर
भावों की ले तूलिका
उभरते हुए चित्र
बिखेरते अव्यक्त रंग
कही दूर से आती
मद्धिम रोशनी
मचाती हलचल
उनीदे स्वप्नों की
दुनियाँ में गहराती
बन्धनों में बाँधती
विलुप्त हो जाती
मन मरीचिका
रेगिस्तानों सी
प्रवीणा त्रिवेदी प्रज्ञा
नई दिल्ली 74