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9 Mar 2022 · 1 min read

मुक्त

मन की अभिव्यक्ति

उतार कर मन के कैनवास पर
भावों की ले तूलिका
उभरते हुए चित्र
बिखेरते अव्यक्त रंग
कही दूर से आती
मद्धिम रोशनी
मचाती हलचल
उनीदे स्वप्नों की
दुनियाँ में गहराती
बन्धनों में बाँधती
विलुप्त हो जाती
मन मरीचिका
रेगिस्तानों सी

प्रवीणा त्रिवेदी प्रज्ञा
नई दिल्ली 74

Language: Hindi
286 Views

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