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10 Jun 2017 · 1 min read

मुक्ति

गुलामी की बेड़ियों पर
क्रान्ति की हवा
और
ज़ुल्म की बरसात ने
ज़ंग लगाया-
और इस ज़ंग लगी बेड़ी पर
सामयिक वैचारिक चोटें लगी
विद्रोह की आग से पिघल कर
ये नाकाम हो गयीं-
और ख़ुद ब ख़ुद
गिरने लगीं
उसी के पैरों में
जिसे आज तक बांधा था।

Language: Hindi
1 Like · 291 Views
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