“मुक्ति”
किसी के प्यार का मोती हूँ
किसी के नेत्रों की ज्योति हूँ
नज़र के वार को संभालो अब
आज से मैं स्वयं की होती हूँ
उन्मुक्त उड़ना है मुझको
पंख पहन लूँगी स्वयं
मेरा आकाश मुक्त कर दो अब
अपने सपनों में रंग भरती हूँ
िकसी के प्यार का मोती हूँ
किसी के नेत्रों की ज्योति हूँ
नज़र के वार को संभालो अब
आज से मै स्वयं की होती हूँ
कमसिन हूँ. कोमल हूँ
कमज़ोर नहीं हूँ लेकिन
रूढियों के.आवरण को
आज अलग करती हूँ
किसी के प्यार का मोती हूँ
किसी के नेत्रों की ज्योति हूँ
नज़र के वार को संभालो अब
आज से मै ्स्वयम् की होती हूँ
अपर्णाथपलियाल “रानू”