मुक्ति
मुक्ति
ढ़लती उम्र के पढ़ाव पर,
अपने लिए जीना सीख चुके हम।
सुख-दुख से परे होकर,
ईश्वरीय स्वरूप को पाकर
अब सब माया-मोह से मुक्ति की कामना है।
अपने आप को अब पहचाना है ,
सबको प्यार से अपनाना है।
इन्सान, प्रकृति, बिखरे खिलौने,
रिश्तों के अच्छे ,सच्चे रंग रूप ,
सबसे सीखा है बहुत सारा ,
जो कुछ पाया है,सीखा है ।
वही देकर जाना है ,
यही सत्य पुराना है।
डॉअमृता शुक्ला