मुक्ति, युक्ति और प्रेम
मुक्ति, युक्ति और प्रेम
// दिनेश एल० “जैहिंद”
हो तुम कितनाहुँ बड़े कर्मयोगी ।।
हो तुम कितनाहुँ बड़े धर्मयोगी ।।
जनम-मरण के बीच लटके रहो,,
बने रहो तुम सदाही भुक्तभोगी ।।
तुमसे परे सदा तुम्हारी मुक्ति ।।
कितनाहुँ करते रहो तुम युक्ति ।।
ये जीवन-चक्र ईश्वरीय प्रबंधन,,
ईश्वरीयीक्छा है सर्वोच्च शक्ति ।।
है यहाँ सब प्रपंच सर्वत्र पाखंड ।।
प्रेम है मूलमंत्र दृष्टिगत अखण्ड ।।
प्रेम प्रेरणा-प्रेम खुदा-प्रेम इंसान,,
प्राण संग यही मिला प्रेम-डण्ड ।।
प्रेम से रहो प्रेम करो प्रेम बाँटो ।।
प्रेम से जीतो व प्रेम से ही हारो ।।
प्रेम से ही तेरे ईश्वर दौड़े आएंगे,,
प्रेम ही है परमात्मा मानो यारो ।।
===============
दिनेश एल० “जैहिंद”
22. 07. 2017