मुक्तहरा / महामंजीर सवैया
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मुक्तहरा सवैया
(8 जगण)
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कृपा करिये करुणामयि मात करें हम काव्य सुधा रसपान ।
भरो उर भाव नये गति दो नव छंद रचें तुम दो वह ज्ञान ।।
नदी सम गीत बहें मन में नित गूँज उठे हिय में फिर तान ।
कबीर बनें तुलसी बन सूर करें गुणगान बनें रसखान ।।
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महामंजीर सवैया
( 8 सगण+ लगा)
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इतनी विनती सुनिये हमरी वरदायिनि मात हमें वर दीजिये ।
उर में उमगें कुछ स्रोत नये अपनी अब मात कृपा यह कीजिये ।।
हम साध सकें यह छंद नया कर जोड़़ खडे़ विनती सुन लीजिये ।
यह छंद समर्पित है सुमुखे विनती सुन शारद माँ अब रीझिये ।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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