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29 Jan 2019 · 1 min read

मुक्तक

” ज़िन्दगी हमने सलीके से सँवारा ही नही है,
कुछ तो क़र्ज़ है जो हमने उतारा ही नही है,
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीख तो लाखों का गुज़ारा ही नही है “

Language: Hindi
359 Views
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