मुक्तक
फ़लक के चांद तारे सब, जमीं से प्यार करते हैं।
घुमड़ते मेघ बारिश कर, दिली इज़हार करते हैं।।
कड़कती धूप सूरज दे, सुनेहरा कर लुभाता है।
रजत शबनम लुटा करके, धरा श्रंगार करते हैं।।
✍?? अरविंद राजपूत ‘कल्प’?✍?
फ़लक के चांद तारे सब, जमीं से प्यार करते हैं।
घुमड़ते मेघ बारिश कर, दिली इज़हार करते हैं।।
कड़कती धूप सूरज दे, सुनेहरा कर लुभाता है।
रजत शबनम लुटा करके, धरा श्रंगार करते हैं।।
✍?? अरविंद राजपूत ‘कल्प’?✍?