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16 Jan 2019 · 1 min read

मुक्तक

” हरी है ये ज़मीं हमसे कि हम तो प्रेम बोते हैं,
सदा इन जागी पलकों में नये सपने सजोते हैं
लकीरें अपने हाथों की बनाना हमको आता है,
वो कोई और होंगे जो अपनी क़िस्मत पर रोते हैं “

Language: Hindi
1 Like · 359 Views
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