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15 Jan 2019 · 1 min read

मुक्तक

” बेचैनियाँ बढ़ीं तो दुआ बन गई ग़ज़ल,
ज़र्रे जो थरथराए, सदा बन गई ग़ज़ल,
चमकी कहीं जो बर्क़ तो ऐहसास बन गई,
छाई कहीं घटा तो अदा बन गई ग़ज़ल”

Language: Hindi
561 Views

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