मुक्तक
मुक्तक
(1)
मिला पतझड़ विरासत में हमें क्यों यार से ए दिल?
मिलीं बेड़ी हिफ़ाज़त में हमें क्यों यार से ए दिल?
गँवाकर दीप नैनों के किया रौशन जहाँ उसका-
मिला धोखा सियासत में हमें क्यों यार से ए दिल?
(2)
रंग-बिरंगे फूल हँस रहे पवन खिलाने आई है।
शबनम के उज्ज्वल से मुक्तक निशा लुटाने आई है।
अलसाए नैनों को खोले अवनी ने ली अँगड़ाई-
स्वर्णिम झिलमिल ओढ़ चुनरिया भोर उठाने आई है।
(3)
कभी दुख में टपकते हैं कभी सुख में छलकते हैं।
नहीं मजहब नहीं है जाति नैनों में चमकते हैं।
कभी तन्हा नहीं छोड़ा निभाया साथ सुख-दुख में-
बड़े हमदर्द आँसू हैं बिना मौसम बरसते हैं।
(4)
गुज़ारी रात जो तन्हा अजब उसकी कहानी है।
वफ़ा की आरजू में लुट गई देखो जवानी है।
छिपाकर ज़ख्म उल्फ़त में अधर से मुस्कुराए वो-
ग़मे यादें बनीं मरहम नहीं दूजी निशानी है।
(5)
प्यार जीत क्या ,प्यार हार क्या रिश्तों का उपहार यही,
उन्मादित हर लम्हे का है नूतन सा अभिसार यही।
प्यार रूँठना, प्यार मनाना जीवन का आधार यही,
भाव निर्झरी परिभाषा में शब्दों का श्रृंगार यही।
(6)
शूल राहों में बिछे बेखौफ़ चलता जा रहा।
घोर अँधियारा मिटाकर दीप जलता जा रहा।
मैं नहीं मुख मोड़ता तूफ़ान से डरकर यहाँ-
तोड़ के चट्टान पथ की आज बढ़ता जा रहा।
(7)
बंद मुठ्ठी लाख की किस्मत बनाने आ गए।
भूख सत्ता की जिसे उसको हटाने आ गए।
है नहीं इंसानियत, ईमान दुनिया में बचा-
हम फ़रेबी यार को दर्पण दिखाने आ गए।
(8)
बंद मुठ्ठी लाख की किस्मत बनाने आ गए।
भूख सत्ता की जिसे उसको हटाने आ गए।
है नहीं इंसानियत, ईमान दुनिया में बचा-
हम फ़रेबी यार को दर्पण दिखाने आ गए।
(9)
आशिकों का क्या ज़माना आ गया।
दर्द सहकर मुस्कुराना आ गया।
दे भरोसा प्यार में सौदा किया-
प्यार किश्तों में चुकाना आ गया।
(10)रौद्र रूप धर नटवर उर में।
गरजो तांडव कर अंबर में।
शोणित भू संताप हरो अब-
ज्वाला भर दो हर प्रस्तर में।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर