मुक्तक
चार मिसरे माँ के चरणों में समर्पित
रिश्तों ने जब भी छोड़ दिया रूठ कर मुझे
माँ ने दिया है आसरा हर राह पर मुझे
“प्रीतम” जो बारिशें हों ग़मों की ये जीस्त में
मिलता है माँ की गोद में ही फिर तो घर मुझे
प्रीतम राठौर भिनगाई
. श्रावस्ती (उ०प्र०)